
बकरीद क्या है ?
हर धर्मो में अलग -अलग तरह के त्यौहार मनाये जाते है उसी तरह मुस्लिम धर्म में भी पहले ३० दिन के रोजे के बाद ईद उल फितर का त्यौहार मनाया जाता है और फिर ईद उल फितर के 70 दिनों के बाद ईद -उल -जुहा का त्यौहार मनाया जाता है जिसे मुस्लिम धर्म में बकरीद के नाम से जानते है इस दिन को मुस्लिम धर्म का बकरीद मुस्लिम धर्म में बहुत अच्छा और नेक आमाल माना जाता है ये मुस्लिम धर्म का बहुत पवित्र त्यौहार मनाया जाता है
बकरीद क्यों ? मनाया जाता है
इस पवित्र त्यौहार बकरीद को मुस्लिम धर्म में क्यों किया जाता है तो हम आप को बताते चले की मुस्लिम धर्म के किताबो से इस बात का पता चलता है की ये हजरते इब्ररहीम अलैहिस सलाम की सुनत है ये हजरते इब्राहिम अलैहिस सलाम की सुनत इस लिए है की हजरते इब्राहीम अलैहिस सलाम ने अपने प्यारे बेटे हजरते इस्माइल अलैहिस सलाम को राजी हो गये थे
उन्होंने बिना कुछ सोचे समझे खुदा के हुक्म के मुताबिक अपने बेटे को खुदा की राह में कुर्बान करने को तैयार थे हजरते इब्राहीम अलैहिस सलाम पर खुदा की तरफ से इम्तेहान लिया गया था इस इम्तेहान में हजरते इब्राहीम अलैहिस सलाम कामयाब हुए थे
और तब से इस दिन को मुस्लिम धर्म में बकरीद के नाम से किया जाता है इस दिन हजरते इब्राहीम अलैहिस सलाम के सुनत पर अमल करते हुए जिस तरह हजरते इब्राहीम अलैहिस सलाम ने खुदा के राह में क़ुरबानी पेश कि थी उसी तरह मुस्लिम धर्म के लोग भी अपने -अपने घरो पर जानवर की क़ुरबानी खुदा की राह में पेश करते है
बकरीद के दिन क्या -क्या ?होता है खास होता है
इस पवित्र त्योहर ईद उल जुहा के दिन लोग आपस में ख़ुशी का इजहार करते है और इस पविर त्यौहार की दिन लोग शुबह उठने के बाद शुबह की नमाज़ को अदा करते है और स इस दिन में रोजा भी रखते है इस रोजे को मुस्लिम धर्म में बहुत पवित्र माना जाता है इस दिन सभी छोटे बरे रोजे से रहते है और फिर तब तक रोजे से रहते है जब तक ईद गाह से वापस न आ जाये तब तक के लिए रोजा रखते है इसे मुस्लिम धर्म में बहुत अच्छा और पवित्र माना जाता है और सभी लोग एक साथ होकर ईद गाह के तरफ चलते है
ईद गाह पहुच कर ईद उल जुहा की नमाज़ को अदा करते फिर सभी लोग ईद गाह से एक साथ वापस आते है और इस दिन सबसे खास बात ये है की लोग ईद गाह से आने के बाद एक -एक करके सभी अपने -अपने घरो पर जानवर की क़ुरबानी खुदा के राह में पेश करते है फिर क़ुरबानी हो जाने के बाद उस जानबर के गोस्त को सभी मुस्लिम भाई एक दुसरे के घर पर थोरा -थोरा तकसीम करते है इसे भी मुस्लिम धर्म में पवित्र माना जाता है इस तकसीम किये हुए गोस्त को बरे ही अदब के साथ खाते है इसे मुस्लिम धर्म में त्ब्बरुक माना जाता है
बकरीद में कौन -कौन से जानबर की क़ुरबानी पेश की जाती है
मुस्लिम धर्म के किताबो से इस बात का पता चलता है की क़ुरबानी में उसी जानबर को खुदा की राह में क़ुरबानी पेश की जाती है जिसे मुस्लिम धर्म में हलाल करार दिया गया है जिसे मुस्लिम धर्म की किताबो में जायज समझा गया है उसी जानबर को मुस्लिम धर्म के लोग क़ुरबानी पेश करते है और उसी जानबर को मुस्लिम धर्म में हलाल माना जाता है
जैसे बकरा ,ऊट ,और भी बहुत सारे जानबर है जिसे मुस्लिम धर्म में हलाल करार दिया गया है और बहुत सारे ऐसे भी जाबर है जिसे मुस्लिम धर्म में हराम यानि जायज करार नही दिया गया है जैसे कुत्ता ,बिल्ली ,शेर ,घोरा इस तरह के और भी बहुत सारे जानबर है जिसे मुस्लिम धर्म में जायज नही माना जाता है
इस तरह के जानबरो की क़ुरबानी मुस्लिम धर्म में जायज नही समझी जाती है इस लिए मुस्लिम धर्म में सिर्फ उन्ही जानबरो की कुर्बानी पेश की जाती है जो मुस्लिम धर्म में जायज होती है जायज जानबर के गोस्त को ही मुस्लिम धर्म में खाना जायज होता है नजायज जानबर का गोस्त खाना मुस्लिम धर्म में हराम माना जाता है और नजायज जानबर की क़ुरबानी भी जायज नही मानी जाती है ये मुस्लिम धर्म में सख्ती के तौर पर नजायज माना गया है